
भारत को मिला नया मुख्य न्यायाधीश: भूषण गवई ने ली शपथ, अंबेडकरवादी सोच के वाहक बने देश के पहले बौद्ध सीजेआई
नई दिल्ली। भारत के सर्वोच्च न्यायालय को नया नेतृत्व मिल गया है। जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने आज, 14 मई 2025 को देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में शपथ दिलाई। इस गरिमामयी अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
जस्टिस गवई न केवल भारत के मुख्य न्यायाधीश बने हैं, बल्कि वे इस पद पर आसीन होने वाले पहले बौद्ध और अंबेडकरवादी पृष्ठभूमि के व्यक्ति भी हैं। यह न्यायपालिका के समावेशी स्वरूप की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
संघर्षों से सीखते हुए शीर्ष तक का सफर
24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती के फ्रीजरपुरा में जन्मे जस्टिस गवई एक साधारण परिवार से आते हैं। उनके पिता आरएस गवई, अंबेडकरवादी राजनीति के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। उन्होंने अपने बच्चों को अनुशासन और शिक्षा की गहराई से परवरिश दी। मां कमलताई एक शिक्षिका थीं, जिन्होंने जीवन में मेहनत का मूल्य सिखाया।
बीआर गवई ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मराठी माध्यम के नगरपालिका स्कूल में ली। आर्थिक संघर्षों के बावजूद उन्होंने वाणिज्य और कानून में डिग्री हासिल की। राजनीति में रुचि रखने वाले गवई ने जीवन का रुख वकालत की ओर मोड़ा और 1985 में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में वकील के रूप में अपने करियर की शुरुआत की।
न्याय के लिए प्रतिबद्धता और ऐतिहासिक फैसले
कानूनी सेवा में अपने चार दशकों के दौरान, जस्टिस गवई ने न्यायिक ईमानदारी और संवेदनशीलता का परिचय दिया। उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट की विभिन्न पीठों में सरकारी वकील के रूप में सेवा की और बाद में न्यायाधीश नियुक्त हुए। नवंबर 2024 में उन्होंने बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि बिना कानूनी प्रक्रिया के संपत्ति गिराना असंवैधानिक है।
अब तक उन्होंने करीब 300 फैसले दिए हैं, जिनमें से कई संविधान पीठ से जुड़े और मौलिक अधिकारों को केंद्र में रखने वाले निर्णय रहे हैं। अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक ठहराने वाले ऐतिहासिक फैसलों में वे शामिल रहे।
आम नागरिक की तरह सोचने वाले न्यायाधीश
जस्टिस गवई का मानना है, “मैं कोर्टरूम से बाहर निकलते ही सुप्रीम कोर्ट का जज नहीं रहता, मैं खुद को एक आम नागरिक मानता हूं।” यही सोच उन्हें एक संवेदनशील, जनोन्मुखी और जिम्मेदार न्यायाधीश बनाती है।
संक्षिप्त कार्यकाल, लेकिन संभावनाओं से भरा
जस्टिस गवई का कार्यकाल भले ही 23 नवंबर 2025 तक सीमित है, लेकिन उनकी न्यायिक दृष्टि और संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता उन्हें एक यादगार मुख्य न्यायाधीश बनाएगी।
