
गांधी पढ़ने के नहीं, जीने के व्यक्तित्व हैं – कुलपति प्रो. नवीन चंद्र लोहनी
गांधी जयंती कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो नवीन चंद्र लोहनी जी ने कहा कि गांधी जी को व्यापक सन्दर्भ में देखे जाने की जरुरत है। गांधी जी की सबसे बड़ी बात यह थी कि वे अंतिम जन की बात करते हैं। प्रो लोहनी ने गांधी जी के भाषा अभियान की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आंदोलन की एक भाषा होनी चाहिए। इस क्रम में गांधी जी के महत्व को समझे जाने की जरुरत है। गांधी पढ़ने के नहीं, जीने के व्यक्तित्व हैं। गांधी आधुनिक व्यक्तित्व की दृष्टि से भी हमारे लिए अनुकरणीय हैं। गांधी भारत को जानने के सूत्र हैं| गांधी जी का स्व व्यक्तिगत नहीं है, राष्ट्रीय है।
मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए गांधीवादी कार्यकर्त्ता श्री इस्लाम हुसैन जी ने कहा कि अपने अनुभवों को साझा किया। आपने गैर -बराबरी और शुचिता जैसे शब्दों के माध्यम से गांधी दर्शन को स्पष्ट किया। गांधी जी के व्यक्तित्व में गैर बराबरी के प्रति प्रतिरोध व न्याय के लिए संघर्ष, ये दो मुख्य बातें थीं। श्री इस्लाम हुसैन जी ने गांधी के सिद्धांतों पर विस्तार से प्रकाश डाला।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो गिरिजा प्रसाद पांडे ने अपना वक्तव्य गांधी जी के उत्तराखंड यात्रा पर केंद्रित रखा। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि गांधी के विचार आगे बढ़ रहे हैं। मनुष्यता जब -जब संकट से गुजरी है, तब -तब गांधी स्मरण आते रहेंगे। गांधी ने अपनी उत्तराखंड यात्रा से नयी दृष्टि मिली, साथ ही आलोचनात्मक दृष्टि भी उन्हें यहाँ से मिली। गांधी जी की यात्राओं ने उन्हें निर्मित किया। साथ ही भारतीय जन मानस को भी लगने लगा था कि यह हमारे जैसा ही व्यक्तित्व हैं। गांधी जी की उत्तराखंड की यात्रा ने यहाँ की महिलाओं को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ा। गांधी की ये यात्राएँ उत्तराखंड को मुख्य धारा से जोड़ा।
गांधी जयंती कार्यक्रम का प्रारम्भ कुलपति प्रो नवीन चंद्र लोहनी एवं मुख्य अतिथि श्री इस्लाम हुसैन, सीका के निदेशक प्रो गिरिजा प्रसाद पांडेय द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कार्यक्रम से हुआ। इसके पश्चात संगीत विभाग के प्राध्यापकों द्वारा वैष्णवन जन तेनो कहिये, पीर पराई जाने ना… की सांगीतिक प्रस्तुति की गयी|
डॉ राजेंद्र कैड़ा ने विषय प्रवेश करते हुए कहा कि गांधी इस सभ्यता के कठिनतम व्यक्तित्व हैं। उन जैसा होना कठिन है।गांधी इस सभ्यता को बड़े स्तर पर परिभाषित करते हैं। गांधी पर्यावरण समेत कई प्रश्नों से टकराते हैं। गांधी को नये सिरे से खोजें जाने की जरुरत है।
दिग्विजय पथनी ने कहा कि गांधी जी राजनीति और नैतिकता के अंतरसम्बन्ध को स्थापित करते हैं। गांधी साधन के साथ ही साध्य को भी लेकर चलते हैं। गांधी का स्वराज्य त्याग और सेवा पर निर्भर है। गांधी का स्वराज्य केवल सत्ता हस्तानतरण मात्र नहीं है। गांधी संवादी संवेदना का प्रयोग करते हैं।
कार्यक्रम के दूसरे वक्ता डॉ शुभांकर शुक्ला ने कहा कि आज सामान्य व्यक्ति और गांधी के दर्शन के बीच खाई बढ़ती जा रही है। गांधी को समझने के कई पहलू हैं । गांधी अपने सामर्थको से ज्यादा अपने विरोधियों के बीच भी प्रासंगिक हैं | गांधी का व्यक्तित्व, उनकी पद्धति बेहद जटिल हैं, इसे नये ढंग से समझे जाने की आवश्यकता है। गांधी जी का अंतकरण का प्रश्न भी सरल नहीं है। गांधी जी की सबसे बड़ी विशेषता उनकी संवादधर्मिता रही है। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्राध्यायक, कर्मचारियों की बड़ी संख्या उपस्थित रही।
विचार गोष्ठी के बाद स्वच्छता कार्यक्रम किया गया। कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन प्रो रेनू प्रकाश ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ श्रुति पंत ने किया।