उत्तराखंड पंचायत चुनाव में बड़ा विवाद: शहरी मतदाता ग्रामीण वोटर लिस्ट में, चुनाव की वैधता पर उठे सवाल

नामांकन और नाम वापसी की प्रक्रिया पूरी, अब अवैध उम्मीदवारों का भविष्य अधर में

देहरादून। उत्तराखंड में पंचायत चुनाव को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम, 2016 को दरकिनार कर निकाय क्षेत्र के मतदाताओं को पंचायतों की मतदाता सूची में शामिल कर लिया गया है, जिससे न केवल अधिनियम का उल्लंघन हुआ, बल्कि ग्रामीण चुनावी प्रक्रिया पर भी सवाल उठने लगे हैं। दरअसल, अधिनियम की धारा-9 की उपधारा-6 स्पष्ट रूप से कहती है कि कोई भी व्यक्ति एक से अधिक क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की मतदाता सूची में नाम नहीं रख सकता। वहीं उपधारा-7 में यह अनिवार्य किया गया है कि यदि किसी का नाम किसी शहरी निकाय (नगर निगम, नगर पालिका या नगर पंचायत) में दर्ज है, तो उसे ग्रामीण क्षेत्र की वोटर लिस्ट में नाम शामिल कराने से पहले यह प्रमाण देना होगा कि उसका नाम शहरी सूची से हट चुका है। इसके बावजूद कई ऐसे मतदाता ग्राम पंचायतों की सूची में शामिल पाए गए हैं, जिनके नाम शहरी निकायों में पहले से दर्ज हैं।

राज्य निर्वाचन आयोग ने इस संबंध में एक सर्कुलर भी जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि जो भी व्यक्ति पंचायत की वोटर लिस्ट में शामिल है, वह न केवल वोट डाल सकता है, बल्कि चुनाव लड़ने का भी अधिकारी है। सर्कुलर में पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के लिए अलग-अलग प्रावधानों का उल्लेख किया गया था।

इस सर्कुलर को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जहां अदालत ने चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप किए बिना केवल इस सर्कुलर पर रोक लगा दी। अब बड़ा सवाल ये खड़ा हो गया है कि जो लोग पहले ही नामांकन कर चुके हैं और नाम वापसी की अंतिम तिथि भी पार हो चुकी है, उनका क्या होगा? राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव राहुल गोयल का कहना है कि आयोग हाईकोर्ट के आदेश का अध्ययन कर रहा है और उसके बाद ही इस संबंध में कोई ठोस निर्णय लिया जाएगा। फिलहाल जिन प्रत्याशियों के नाम दो जगहों की वोटर लिस्ट में शामिल हैं, उनके भविष्य को लेकर स्थिति अस्पष्ट बनी हुई है।

चुनावी पारदर्शिता और वैधानिकता पर उठे इस सवाल ने पूरे पंचायत चुनाव की निष्पक्षता को कठघरे में ला खड़ा किया है। अब सभी की नजरें आयोग की अगली कार्यवाही और हाईकोर्ट के अंतिम फैसले पर टिकी हैं।

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