
मैं स्त्री हूँ
मैं प्रेम, समर्पण औ मर्यादा
धैर्य, समर्थन, त्याग की मूरत
सब लेकर मिलने आउंगी ।
मैं वो सब लेकर आऊंगी
जिसकी तुमने चाह रखी थी
मैं वही तराना गाउंगी ।
लेकिन…… प्रिय मेरे !
जो पहुचे ठेस कभी कोई
अपने आत्मसम्मान के खातिर
मैं तुमसे भी लड़ जाऊंगी
तुम रखो खोलकर बड़ी तिजोरी
मैं सब भर भरकर लाऊंगी
तुमसे भी एक वचन मैं लूंगी
तुमको साथ निभाना होगा
मेरे संग में साथी हरदम
तुमको साथ मेरे चलना होगा ।
लगता हो जो बहुत भला सा
ऐसा वो रंग भर दो मुझमे
वजूद को कोई मिले जहां
और मिलता हो सम्मान वहा
मै उस पर मरती मिटती हूँ
आभार उसी का करती हूं
मैं नही कोई धन की भूखी
मैं प्रेम समर्पण करती हूँ
कही मेरा है सहज रूप
तो कही पर चंडी रूप मेरा
हर रूप मेरा ऐसा होगा
जैसी चाहत तेरी होगी
वैसे ही मैं संवरती हूं।
तोल मोल की पक्की हूँ
हिसाब बराबर रखती हूँ ।
मीना जोशी
हल्द्वानी
