
दिव्यांगजनों के समावेशी भविष्य की दिशा में ऐतिहासिक पहल: उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का सफल आयोजन
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, भारतीय पुनर्वास परिषद (CRR) और केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के संयुक्त तत्वावधान में यूनिवर्सल डिज़ाइन फॉर लर्निंग विषय पर केंद्रित तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का सफल आयोजन किया गया। समापन समारोह विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ओम प्रकाश सिंह नेगी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में उत्तराखंड राज्य उच्च शिक्षा उन्नयन परिषद के उपाध्यक्ष एवं दायित्वधारी प्रो. देवेंद्र भसीन शामिल हुए।
समावेशी समाज की नींव रखती कार्यशाला
शिक्षाशास्त्र विद्याशाखा के निदेशक प्रो. डिगर सिंह फस्वार्ण ने अपने स्वागत भाषण में कार्यशाला की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि समावेशी समाज के निर्माण में ऐसे आयोजनों की महती भूमिका है।

मुख्य अतिथि प्रो. भसीन ने अपने संबोधन में कहा कि वर्तमान समय में दिव्यांगजनों के लिए कौशल विकास व रोजगार आधारित पाठ्यक्रमों की शुरुआत अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने दिव्यांगजनों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए समान अवसर और संसाधन उपलब्ध कराने पर ज़ोर दिया।
UDL के ज़रिए शिक्षा में समावेशिता
कुलपति प्रो. ओम प्रकाश सिंह नेगी ने कार्यशाला की सराहना करते हुए प्रतिभागियों से अपेक्षा की कि वे यहां प्राप्त ज्ञान को दिव्यांगजनों की शिक्षा में प्रयोग करें। कार्यशाला में डॉ. महेश चौधरी (शकुंत मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय, लखनऊ) ने सार्वभौमिक शिक्षण मॉडल पर व्याख्यान दिया।
इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान, देहरादून के प्रो. विनोद केन ने यूनिवर्सल डिज़ाइन ऑफ़ लर्निंग की फिलॉसफी पर चर्चा की, जबकि प्रो. पंकज कुमार ने इसके व्यावहारिक पहलुओं को रेखांकित किया।
रिपोर्ट एवं सहभागिता
कार्यशाला के संयोजक डॉ. सिद्धार्थ पोखरियाल (सहायक प्राध्यापक, विशेष शिक्षा विभाग) ने कार्यशाला की तीन दिवसीय रिपोर्ट प्रस्तुत की और इसे सभी प्रतिभागियों के लिए अत्यंत लाभकारी बताया।
इस आयोजन में विशेष शिक्षा विभाग के श्रीमती भावना धोनी, श्री तरुण नेगी, श्रीमती रश्मि सक्सेना, डॉ. बबीता खाती, श्रीमती पूजा शर्मा, सौरभ सुयाल, अंकिता सिंह, निशा राणा समेत विभिन्न प्रांतों से आये प्रतिभागी उपस्थित रहे।

यह कार्यशाला न केवल दिव्यांगजनों की शिक्षा व्यवस्था को सशक्त बनाने में एक मील का पत्थर है, बल्कि यह समावेशी समाज के निर्माण में विश्वविद्यालय की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।
