
हिमालय का सन्यासी कलम अब खामोश है — मशहूर अंग्रेजी लेखक बिल एटकिन नहीं रहे
देहरादून। हिमालय की ऊँचाइयों को शब्दों में पिरोने वाला एक अद्वितीय लेखक, एक संवेदनशील आत्मा और भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी — बिल एटकिन — अब इस दुनिया में नहीं रहे। बुधवार रात 91 वर्ष की आयु में देहरादून के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया। गुरुवार को हरिद्वार में उनका अंतिम संस्कार वैष्णव दीक्षित हिंदू परंपरा के अनुसार संपन्न हुआ।
स्कॉटलैंड में 1834 में जन्मे बिल एटकिन 1959 में भारत आए और फिर यहीं के होकर रह गए। 1966 में उन्होंने भारतीय नागरिकता ले ली और उत्तराखंड की वादियों को अपना घर बना लिया। मसूरी के बालाहिसार क्षेत्र में उनका ठिकाना था, जहां से उन्होंने हिमालय, भारतीय संस्कृति और आस्था की यात्रा को अपनी लेखनी में अमर कर दिया।
उन्हें “पद्मश्री रस्किन बांड के समकक्ष” माना जाता है — और वाजिब ही है। उन्होंने ‘Footloose in the Himalaya’, ‘1000 Himalayan Quiz’, ‘Shri Sathya Sai Baba: A Life’, ‘Nanda Devi Mela’ जैसी 14 प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं जो हिमालय की आत्मा और भारतीय संस्कृति की सुगंध से सराबोर हैं।
लेखक गणेश सैली ने उन्हें याद करते हुए कहा, “बिल एटकिन जैसे लेखक पीढ़ियों में एक बार आते हैं। उनके शब्दों में पर्वतों की गूंज और नदियों की नमी बसती थी। उनका जाना एक युग का अंत है।”
बिल एटकिन न केवल साहित्य में दक्ष थे, बल्कि हिंदी और गढ़वाली भाषा पर भी गहरी पकड़ रखते थे। नंदा देवी के प्रति उनका अटूट प्रेम, मंदिरों में आस्था, और वैष्णव दीक्षित जीवनशैली उन्हें भारतीय संस्कृति से आत्मसात कराती थी।
पारिवारिक मित्र कुशाल सिंह चौहान ने बताया कि, “बिल साहब हमारे परिवार का हिस्सा थे। 2011 में ही उन्होंने इच्छा जताई थी कि उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति से हो। वे रोज सुबह चाय पीकर कंप्यूटर पर बैठ जाते और लिखते रहते। उनका जीवन साधना की तरह था।”
आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं, तो हिमालय की हवाएं भी शायद कुछ उदास हैं। साहित्य और संस्कृति ने अपना एक सच्चा साधक खो दिया है।
