
सरकार के दावों की पोल खोलती हकीकत: पहाड़ से मैदान तक अस्पतालों में डॉक्टरों का टोटा, मरीज बेहाल
उत्तराखंड सरकार जहां हाईकोर्ट में यह दावा कर रही है कि प्रदेश में डॉक्टरों की कोई कमी नहीं है, वहीं जमीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर पेश कर रही है। सीएचसी, पीएचसी से लेकर जिला अस्पतालों तक हालात बद से बदतर हैं। कई अस्पताल बिना डॉक्टर के चल रहे हैं, तो कई जगह विशेषज्ञ चिकित्सकों की भारी कमी है।
प्रदेश की जनता सवाल उठा रही है कि अगर डॉक्टरों की कमी नहीं है, तो फिर अस्पताल खाली क्यों पड़े हैं? खासकर पहाड़ी जिलों में यह संकट वर्षों से जस का तस बना हुआ है।
अल्मोड़ा
जिले के नौ सीएचसी में विशेषज्ञ चिकित्सकों के 47 पद खाली हैं। न तो बाल रोग विशेषज्ञ हैं, न ही स्त्री रोग विशेषज्ञ। भिकियासैंण सीएचसी सिर्फ संविदा डॉक्टर के भरोसे चल रही है।
बागेश्वर
जिले में डॉक्टरों के 107 पदों में से 31 खाली हैं। नौ पीएचसी पूरी तरह डॉक्टरविहीन हैं, जबकि सीएचसी कांडा, कपकोट और बैजनाथ में विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं हैं।
नैनीताल
यहां 340 पदों में से 87 रिक्त हैं। बीडी पांडे अस्पताल में ही 14 पद खाली पड़े हैं, जिनमें दो बाल रोग विशेषज्ञ शामिल हैं।
पिथौरागढ़
60 से अधिक अस्पतालों में 174 पदों के मुकाबले 85 खाली हैं। महिला आबादी महज दो स्त्री रोग विशेषज्ञों के भरोसे है। कई डॉक्टर पीजी पढ़ाई पर गए हैं और 10 लंबे समय से लापता बताए जाते हैं।
चंपावत
यहां आधे से ज्यादा डॉक्टरों की कमी है। 111 पदों में सिर्फ 60 पर ही डॉक्टर कार्यरत हैं। जिला अस्पताल में 36 में से 11 पद खाली हैं।
ऊधमसिंह नगर
यहां 226 में से 131 पद रिक्त हैं। 33 पीएचसी में से 18 में चिकित्साधिकारी तक मौजूद नहीं हैं। जिला अस्पताल का आईसीयू समेत कई अहम विभाग अधर में हैं।
👉 साफ है कि सरकार के दावे और जमीनी सच्चाई में जमीन-आसमान का फर्क है। पहाड़ से लेकर मैदान तक मरीज इलाज के लिए भटक रहे हैं, लेकिन डॉक्टरों की भारी कमी पूरी व्यवस्था को सवाल