
यूओयू ने रचा इतिहास: दूरस्थ शिक्षा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया — सुबोध उनियाल
उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय का 20वां स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया गया, दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी और पुस्तक मेला सम्पन्न
हल्द्वानी। उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय (यूओयू) के 20वें स्थापना दिवस पर प्रदेश के भाषा, वन एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि विश्वविद्यालय ने दूरस्थ और मुक्त शिक्षा के क्षेत्र में नई मिसाल कायम की है। उन्होंने कहा कि यूओयू द्वारा स्वयं का रेडियो एप लॉन्च करना एक उल्लेखनीय उपलब्धि है, जो विश्वविद्यालय को शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी बना रहा है।
काबीना मंत्री ने कहा कि बीते दो दशकों में विश्वविद्यालय ने न केवल राज्य बल्कि देशभर में गुणवत्तापूर्ण दूरस्थ शिक्षा का नया आयाम प्रस्तुत किया है। उन्होंने विश्वास जताया कि आने वाले वर्षों में यूओयू अपनी उत्कृष्ट परंपरा को और मजबूत करेगा।

क्षेत्रीय विधायक डॉ. मोहन सिंह बिष्ट ने कहा कि यूओयू ने शिक्षा को प्रदेश के सुदूरवर्ती इलाकों तक पहुँचाकर एक सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत की है।
कुलपति प्रो. नवीन चन्द्र लोहनी ने बताया कि विश्वविद्यालय जल्द ही होमस्टे आधारित रोजगारपरक पाठ्यक्रम शुरू करने जा रहा है। इसके साथ ही कौशल विकास और भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित नये कोर्स भी प्रारंभ होंगे, जिससे युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे।
विशिष्ट अतिथि प्रो. दुर्गेश पंत (महानिदेशक, यूकॉस्ट) ने कहा कि अब शिक्षा को एआई (Artificial Intelligence) के साथ जोड़ने का समय आ गया है, ताकि आधुनिक युग की आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा को सशक्त बनाया जा सके।

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के तीन पूर्व छात्र—डॉ. दीप चन्द्रा, डॉ. विपिन चन्द्रा और डॉ. सुधीर पंत—को सम्मानित किया गया। संचालन डॉ. कुमार मंगलम ने किया।
भाषा और संस्कृति की जड़ों पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
कुमाऊँनी और गढ़वाली भाषा संरक्षण पर विद्वानों ने रखे विचार
इधर, विश्वविद्यालय में उत्तराखण्ड भाषा संस्थान, देहरादून और केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन हुआ।
संगोष्ठी में “कुमाऊँनी और गढ़वाली भाषा की वर्तमान स्थिति, चुनौतियां और संभावनाएं” विषय पर विद्वानों ने अपने विचार रखे। वक्ताओं ने कहा कि भाषा केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक एकता का प्रतीक है।
प्रो. उमा भट्ट ने कहा कि वैश्वीकरण और शहरीकरण के इस दौर में लोकभाषाओं का संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है, क्योंकि भाषा हमारी आत्मा और अस्तित्व की प्रतीक है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गणेश खुगशाल ‘गणि’ ने कहा कि साहित्य के माध्यम से क्षेत्रीय भाषाओं की जीवंतता बनाए रखना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।










