
भीमताल झील का गहराता संकट: तीन दशक से सफाई को तरस रही ‘जीवनदायिनी’ झील, डेल्टा में बदलता मल्लिताल छोर
भीमताल। प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भीमताल की झील, जो हजारों लोगों की आजीविका और क्षेत्र की पारिस्थितिकी का आधार मानी जाती है, आज स्वयं जीवन के लिए जूझ रही है। झील की बिगड़ती स्थिति, घटता जलस्तर और बढ़ता प्रदूषण अब स्थानीय नागरिकों, पर्यावरण प्रेमियों और व्यवसायियों के लिए गहरी चिंता का विषय बन चुका है।
मई माह में जल स्तर कम होने के कारण झील का मल्लिताल छोर डेल्टा जैसी भूमि में तब्दील होता दिखाई देने लगा है। बीते कई वर्षों से गाद और मलुवा जमा होने के कारण झील की गहराई भी लगातार घट रही है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 1985 में झील की गहराई 22 मीटर थी, जो अब घटकर मात्र 17 मीटर रह गई है। जल संग्रहण क्षमता में भारी कमी आने के साथ ही झील का पानी अब पीने योग्य भी नहीं रहा।
1998 के बाद नहीं हुई सफाई, 27 वर्षों से इंतज़ार
भीमताल झील की आखिरी बार सफाई वर्ष 1998 में हुई थी। इसके बाद से झील लगातार उपेक्षा की शिकार रही है। समाजसेवी एवं झील प्रेमी पूरन चंद्र बृजवासी बीते कई वर्षों से लगातार जिला प्रशासन, राज्य सरकार और केंद्र सरकार तक ज्ञापन भेजकर झील की सफाई और गाद-मिट्टी की निकासी की मांग कर चुके हैं।
‘ड्रेन A’ और ‘ड्रेन B’ बने प्रदूषण के स्रोत
झील में गिरने वाले प्रमुख नाले — ‘ड्रेन A’ और ‘ड्रेन B’ — खुटानी से झील मुहाने तक पूरी तरह गंदगी, सीवर और मलुवा से भरे पड़े हैं। यदि मानसून पूर्व इनकी सफाई नहीं हुई, तो भारी वर्षा के साथ यह सारी गंदगी झील में समा जाएगी, जिससे झील की स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।
प्रशासन से विशेष बजट और कार्ययोजना की मांग
श्री बृजवासी ने प्रशासन से अपील की है कि भीमताल झील की संपूर्ण सफाई, गाद-मिट्टी की निकासी, जल स्रोतों के संरक्षण और झील में गिरने वाले नालों की रोकथाम हेतु एक विशेष कार्ययोजना बनाई जाए और इसके लिए अलग बजट स्वीकृत किया जाए। उन्होंने चेताया कि यदि शीघ्र ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह प्राकृतिक धरोहर इतिहास का हिस्सा बन सकती है।
