
बंदरों के कृत्रिम आतंक पर फूटा जनआक्रोश: प्रशासन हरकत में, अब रानीखेत रेंज को मिले सख्त आदेश
सामाजिक कार्यकर्ता संजय पाण्डे के संघर्ष से जागा प्रशासन, बंदरों को छोड़े जाने की साजिश पर कसा शिकंजा
अल्मोड़ा (उत्तराखंड)। नगर क्षेत्र में लगातार बढ़ते बंदरों के आतंक और उनके कृत्रिम पुनर्वास को लेकर अब प्रशासनिक तंत्र जागने लगा है। सामाजिक कार्यकर्ता संजय पाण्डे द्वारा वर्षों से उठाए जा रहे इस जनसुरक्षा से जुड़े गंभीर मुद्दे पर अब शासन ने संज्ञान लिया है।
5 जून 2025 को रानीखेत वन क्षेत्राधिकारी द्वारा जारी पत्र (पत्रांक 2007/10-1) में स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि घिघांरीखाल बैरियर पर हर संदिग्ध वाहन की गहन जांच की जाए। खास तौर पर उन वाहनों पर नजर रखने को कहा गया है, जिनसे बंदरों को बाहरी क्षेत्रों से लाकर अल्मोड़ा क्षेत्र में छोड़ा जा रहा है।
🧾 सिस्टम की सुस्ती पर उठाए सवाल
संजय पाण्डे ने यह मुद्दा केवल लोकल स्तर पर नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री हेल्पलाइन, वन्यजीव संघर्ष हेल्पलाइन, और जिलाधिकारी कार्यालय तक पहुँचाया। बावजूद इसके, नगर निगम और जिला प्रशासन ने अब तक कोई ठोस कार्य योजना नहीं बनाई।
कुमाऊं कमिश्नर को भेजी गई शिकायत (क्रमांक CHML0620258767870) में उन्होंने स्पष्ट कहा कि प्रशासन सच्चाई जानने के बावजूद निष्क्रिय बना हुआ है। जिलाधिकारी स्वयं यह स्वीकार कर चुके हैं कि बंदरों को छोड़ा जा रहा है, लेकिन इसके रोकथाम की कोई प्रभावी रणनीति मौजूद नहीं है।
🗣️ “मैं रुकने वाला नहीं”: संजय पाण्डे
संजय पाण्डे का कहना है:
“मैं राजनैतिक नहीं, सामाजिक कार्यकर्ता हूं – मेरा मकसद जनसमस्याओं का स्थायी समाधान है, न कि शोहरत या स्वार्थ।”
उनके अनुसार यह लड़ाई अब राज्य स्तर से ऊपर जनआंदोलन का रूप ले सकती है, क्योंकि यह केवल बंदरों की बात नहीं, बल्कि जनस्वास्थ्य, जनसुरक्षा और प्रशासनिक जवाबदेही का सवाल है।
💡 स्वास्थ्य और नागरिक सुविधाओं में उल्लेखनीय योगदान
संजय पाण्डे ने केवल इस एक मुद्दे पर ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, संचार और स्वच्छता के क्षेत्र में भी बहुमूल्य योगदान दिया है। उनके प्रयासों से: MRI, CT Scan, ENT, ऑडियोमेट्री, ब्लड बैंक, और लेप्रोस्कोपिक मशीन जैसी सेवाएं शुरू हुईं।
एयरटेल, जियो, वोडाफोन और बीएसएनएल के नेटवर्क सुधार और टावर स्थापना में उन्होंने कंपनियों से संवाद किया।
नालियों और कलमठों की सफाई हेतु भी वे लोक निर्माण विभाग के लगातार संपर्क में रहे।
✅ निष्कर्ष:
जब सरकार और तंत्र निष्क्रिय हो जाएं, तब एक जागरूक नागरिक की आवाज़ क्रांति बन जाती है। संजय पाण्डे आज उसी आवाज़ का नाम हैं, जो न केवल सवाल उठाते हैं, बल्कि समाधान की दिशा में भी पहल करते हैं।
