पीने-पिलाने की संस्कृति लोकतंत्र की जड़ों को कर रही है कमजोर

हल्द्वानी। ग्राम पंचायतों में विकास के लिए बढ़ता पैसा और प्रधान पद की प्रतिष्ठा को देखकर प्रत्याशी अपनी जीत पक्की करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं। साथ ही पंचायत चुनावों की प्रक्रिया परवान चढ़ने के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में अवैध शराब की तस्करी भी होने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। इस दौरान लोगों का शराब परोसने का जो दौर चला है वह वास्तव में हमारे लोकतंत्र के जड़ों को खोखला करने का कार्य कर रहा है। वर्तमान में पंचायत चुनावों के दौरान भी शराब बांटने की घटनाएं आम तौर पर सुनी या देखी जा रही हैं। आलम यह है कि चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद से ही शराब बांटने की घटनाएं सुनने में आती हैं और चुनावों के समाप्त हो जाने तक यह चलता रहता है।

विदित हो कि चुनाव आते ही खाने पीने वाले लोगों की एक प्रकार से लाटरी जैसी लग जाती है। वे कभी इस पल्ले की पी रहे हैं तो कभी दूसरे पल्ले की। इसके साथ ही समोसा और कोल्ड ड्रिंक्स भी लोग पीते हुए देखे जा सकते हैं। पूछने पर पता चलता है कि ये फलां व्यक्ति ने सौगात के रूप में भेजे हैं जो चुनावों में उतरा है।

जानकारों का मानना है कि यह परंपरा पंचायतों में ही नहीं हैं वरन अन्य चुनावों के दौरान भी दिख जाती है। इस दरिमयान भी मतदाताओं को लुभाने के लिए शराब के साथ-साथ अन्य सामग्री भी बांटी जाती है। इधर खाने-पीने वालों को भी पूर्ण दोष देना गलत है, जब जनता को मुफ्त में मिल रहा है तो वह भी बहती गंगा में हाथ धोने से परहेज क्यों करे।

जाति और पैसों पर भी मतदाता का झुकाव
गांवों में जमीनी हकीकत जानी, तो जाति के साथ शराब, दावत और पैसों का लालच भी हावी दिखा। प्रत्याशियों के साथ शराब कारोबारियों ने भी धंधा चमकाने के लिए तैयारियां पहले से शुरू कर दी थीं। लोगों का कहना है कि प्रत्याशी विकास का भी लालच भी देते हैं, लेकिन चुनावी मौसम के डेढ़-दो महीने में दारू, मुर्गा और पैसे बांटने का असर सबसे ज्यादा रहता है।

माल खाओ दादी का वोट छोटे भाई का
अमूमन चुनावों के दौरान यह जुमला भी आम हो चला है। दारु पीने वाला व्यक्ति सभी दावेदारों या उम्मीदवारों से शराब लेता है लेकिन वोट उसी को देता है, जिसे देना पहले से तय कर लिया है। जो व्यक्ति दारु और पैसे बांटता है वो पैसे कमाने के लिए चुनाव लड़ रहा है। चुनावों में शराब के चलन के खिलाफ अभियान की जरुरत है। महिलाओं को जाग्रत करने की कोशिश करनी चाहिए। ये काम महिलाएं ही कर पाएंगी, क्योंकि इससे सबसे अधिक नुकसान उन्हीं का होता है।

खाने पीने वालों की मौजा ही मौजा
हालाकि कोई भी प्रत्याशी कभी दारू या मुर्गा बांटते हुए नहीं पकड़ा जाता है लेकिन इस काम में फोन बड़ी भूमिका निभाता है। सूत्रों के अनुसार जो लोग इस प्रकार के काम में लिप्त हैं, उन्हें सुरक्षित रूप से दारू की व्यवस्था कराई जाती है। इस काम को बड़ी गोपनीयता व जिम्मेदारी के साथ किया जाता है।

लोगों की कमजोरी का फायदा उठाते हैं दावेदार
देखने में आता है कि चुनावों के दौरान दावेदार लोगों की कमजोरी का फायदा उठाने से पीछे नहीं रहते हैं। दावेदार जनता के मनोविज्ञान कोे भलीभांति समझता है। उसे पता है कि लोगों की कमजोरी क्या है और  वे प्रलोभन देकर कार्य चलाते हैं।

रामलाल बने नजीर

जहां कुछ लोग दारू और अन्य प्रलोभनों के लिए जाने जाते हैं वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इसे गलत मानते हैं। हल्द्वानी विकासखंड में हरिपुर तुलाराम गोरापड़ाव के पूर्व प्रधान व वर्तमान में प्रधान के प्रत्याशी रामलाल ने बताया कि वे मतदाताओं को शराब या अन्य प्रलोभन देने के सख्त खिलाफ हैं। उन्होंने एक मुलाकात में कहा कि जनता आपको आपके काम के हिसाब से वोट देगी, शराब पिलाने या अन्य प्रलोभन से जनता वोट देने से रही। 

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