
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में ‘हिमालय संरक्षण’ पर मंथन, वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन और अनियंत्रित विकास को बताया सबसे बड़ा खतरा
हल्द्वानी। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी एवं देवभूमि विज्ञान समिति, उत्तराखंड के संयुक्त तत्वावधान में विश्वविद्यालय परिसर में हिमालय दिवस का भव्य आयोजन किया गया। इस अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में “हिमालय क्षेत्र के संरक्षण” विषय पर गहन विचार-विमर्श हुआ।
कार्यक्रम की शुरुआत
कार्यक्रम का शुभारंभ प्रो. पी.डी. पंत, निदेशक अकादमिक ने किया। उन्होंने अतिथियों डा. नरेंद्र सिंह, वैज्ञानिक-एफ, एरीज नैनीताल तथा डा. गौतम रावत, वैज्ञानिक-ई, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून का स्वागत किया। उद्घाटन संबोधन में बताया गया कि हिमनदों का पीछे हटना, वनों की कटाई, अनियंत्रित पर्यटन और जलवायु परिवर्तन ने बाढ़, भूस्खलन और जैव विविधता के नुकसान जैसे खतरों को बढ़ा दिया है।
कुलपति का संदेश
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नवीन चंद्र लोहनी ने वर्चुअल माध्यम से कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हिमालय न केवल गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी महान नदियों का उद्गम स्थल है, बल्कि यह लाखों लोगों के जीवन-यापन का आधार, जैव विविधता का खजाना और सांस्कृतिक-आध्यात्मिक धरोहर भी है। उन्होंने सभी से आह्वान किया कि पर्यावरणीय संतुलन और सामाजिक-आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए व्यावहारिक संरक्षण रणनीतियों पर काम किया जाए।
विशेषज्ञों के विचार
डा. नरेंद्र सिंह (एरीज) ने “हिमालय और उसकी चुनौतियाँ: एक जलवायु परिप्रेक्ष्य” विषय पर व्याख्यान देते हुए बताया कि हिमालय दुनिया की सबसे युवा और ऊँची पर्वत श्रृंखला है। बदलते जलवायु पैटर्न के कारण इसके ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे नदियाँ संकट में हैं। बादल फटना, भूस्खलन और ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) जैसी आपदाएँ बढ़ रही हैं।
डा. गौतम रावत (वाडिया संस्थान) ने कहा कि सड़क, बांध और जलविद्युत परियोजनाओं जैसे अनियंत्रित विकास ने क्षेत्र की पारिस्थितिक नाजुकता को बढ़ा दिया है। कंक्रीट निर्माण से हीट आइलैंड इफेक्ट हो रहा है, जिससे स्थानीय तापमान बढ़ रहा है और जैव विविधता, विशेषकर विलुप्तप्राय प्रजातियाँ, खतरे में हैं।
परिचर्चा व सुझाव
वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया कि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, एरीज और वाडिया संस्थान मिलकर शिक्षा, शोध व जनजागरूकता अभियानों के माध्यम से संरक्षण के क्षेत्र में एमओयू कर सकते हैं।
विज्ञान भारती एवं देवभूमि विज्ञान समिति के समन्वयक श्री आशुतोष सिंह ने हिमालय के इतिहास और धार्मिक महत्व पर प्रकाश डाला।
अध्यक्षीय उद्बोधन
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. गिरिजा पांडे, निदेशक मानवीकी विद्याशाखा ने की। उन्होंने हिमालय की पारिस्थितिकी, संस्कृति और आध्यात्मिक महत्त्व पर बल देते हुए कहा कि “नाजुक पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।”
सहभागिता
ऑनलाइन माध्यम से देशभर के 200 से अधिक छात्र-शिक्षक जुड़े। कार्यक्रम का संचालन डा. मीनाक्षी राणा व डा. बिना फुलारा ने किया, जबकि अंत में कुलसचिव डा. खेमराज भट्ट ने आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम में प्रो. कमल देवलाल, डॉ. एच.सी. जोशी, प्रो. जितेंद्र पांडे, प्रो. आशुतोष भट्ट, प्रो. गगन सिंह, डॉ. वीरेंद्र सिंह, डॉ. श्याम सिंह कुंजवाल, डॉ. राजेश मठपाल, डॉ. प्रदीप पंत, डॉ. कृतिका सहित विश्वविद्यालय के सभी अध्यापक मौजूद रहे।