
उत्तराखंड की 10,760 पंचायतें बिना नेतृत्व के, अध्यादेश में फंसा संवैधानिक पेच
देहरादून। उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायतों (ग्राम, क्षेत्र और जिला) का कार्यकाल समाप्त हो चुका है और प्रशासकों की अवधि भी खत्म हो गई है। राज्य सरकार चुनाव नहीं करा सकी, जिसके चलते अब पंचायतें नेतृत्वविहीन हो गई हैं। प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति के लिए पंचायती राज अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव राजभवन भेजा गया था, लेकिन वह तकनीकी और संवैधानिक कारणों से अटक गया है।
🧾 क्या है मामला?
उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम के अनुसार, अगर किसी कारणवश पंचायत चुनाव समय पर नहीं हो पाते, तो छह महीने के लिए प्रशासक नियुक्त किए जा सकते हैं। इसी प्रावधान के तहत राज्य सरकार ने हरिद्वार को छोड़कर बाकी पंचायतों में प्रशासकों की नियुक्ति की थी। लेकिन अब इनका कार्यकाल भी समाप्त हो चुका है।
ग्राम पंचायतों में प्रशासकों का कार्यकाल 4 दिन पहले समाप्त हुआ।
क्षेत्र पंचायतों में 2 दिन पहले।
जिला पंचायतों में 1 जून को समाप्त हुआ।
🏛️ अध्यादेश में फंसा संशोधन
सरकार ने प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति के लिए पंचायती राज एक्ट में संशोधन कर अध्यादेश के जरिए समाधान निकालने की कोशिश की, लेकिन विधायी विभाग ने इसे तकनीकी आधार पर लौटा दिया। वजह थी — 2021 में हरिद्वार में एक समान मामला होने के कारण पहले भी ऐसा अध्यादेश लाया गया था जिसे विधानसभा से पारित नहीं किया गया था। अब वही अध्यादेश दोबारा लाना संविधान की भावना के खिलाफ माना गया है।
📌 क्या कहते हैं जानकार?
संविधान पीठ का निर्णय कहता है कि एक बार लौटा हुआ अध्यादेश ठीक उसी रूप में दोबारा नहीं लाया जा सकता। ऐसा करना संवैधानिक प्रक्रिया के साथ धोखा माना जाएगा।
📊 पंचायतों की स्थिति अभी:
पंचायत स्तर कुल संख्या स्थिति
ग्राम पंचायतें 7478 प्रशासक कार्यकाल समाप्त
क्षेत्र पंचायतें 2941 कार्यकाल समाप्त (2 दिन पहले)
जिला पंचायतें 341 कार्यकाल समाप्त (1 जून को)
हरिद्वार की पंचायतें 318 पहले ही चुनाव हो चुके
🚨 निष्कर्ष:
राज्य की 10,760 पंचायतें इस समय नेतृत्वविहीन हो चुकी हैं। अब अध्यादेश में संशोधन या विधानसभा से नया कानून पास कराना ही एकमात्र विकल्प है। तब तक के लिए पंचायतों का कामकाज प्रभावित रह सकता है।
