आरक्षण में अनियमितता पर घिरी सरकार: हाईकोर्ट ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव पर लगाई रोक

बिना गजट अधिसूचना के लागू किया आरक्षण, 3000 से अधिक आपत्तियों के बावजूद प्रक्रिया आगे बढ़ाई गई

देहरादून। उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की प्रक्रिया एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गई है। समय पर चुनाव न कराने के बाद अब सरकार पर आरक्षण लागू करने में संवैधानिक नियमों की अनदेखी के गंभीर आरोप लग रहे हैं। मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया है, जिसने फिलहाल चुनाव प्रक्रिया पर रोक लगा दी है।

पंचायत संगठन और याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि आरक्षण व्यवस्था में पारदर्शिता नहीं बरती गई। बिना गजट अधिसूचना जारी किए ही आरक्षण लागू कर दिया गया, जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। इसके साथ ही पुराने रोस्टर को समाप्त कर नई सूची लागू की गई, जिससे हजारों लोग प्रभावित हुए हैं।

हाईकोर्ट की सख्ती: पहली बार अधिसूचना के बाद भी चुनाव पर रोक

उत्तराखंड पंचायत संगठन के संयोजक जगत मार्तोलिया के अनुसार यह पहला मौका है जब चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद भी हाईकोर्ट ने प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। उन्होंने कहा कि रोस्टर प्रणाली इस तरह होनी चाहिए थी कि अंतिम व्यक्ति तक आरक्षण का लाभ पहुंचे, लेकिन सरकार ने पुरानी सूची रद्द कर मनमर्जी से नई बनाई।

प्रशासनिक भ्रम: पहले अधिकारी फिर निवर्तमान प्रतिनिधि बने प्रशासक

भाकपा माले के प्रदेश सचिव इंद्रेश मैखुरी ने बताया कि पहले प्रशासनिक अधिकारियों को पंचायतों का प्रशासक बनाया गया, लेकिन कुछ समय बाद आदेश बदलकर निवर्तमान प्रतिनिधियों को ही प्रशासक घोषित कर दिया गया। यह भी पहली बार हुआ है कि पुराने प्रतिनिधियों को ही प्रशासनिक अधिकार दे दिए गए हैं।

तीन हजार से अधिक आपत्तियाँ, लेकिन समाधान अधूरा

याचिकाकर्ता मुरारी लाल खंडेवाल ने हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा कि आरक्षण के चक्रीय क्रम को तोड़ दिया गया है। साथ ही, दो अलग-अलग तरह की आरक्षण व्यवस्थाएँ बनाकर भ्रम की स्थिति पैदा की गई है। जिला प्रशासन को इस प्रक्रिया में 3000 से अधिक आपत्तियाँ मिलीं, लेकिन अधिकांश का उचित समाधान नहीं किया गया।

सरकार का पक्ष: जल्द जारी होगी अधिसूचना

पंचायतीराज सचिव चंद्रेश कुमार ने बयान जारी करते हुए कहा कि आरक्षण संबंधी नियमावली की अधिसूचना प्रक्रिया में है और इसे शीघ्र ही जारी कर न्यायालय में प्रस्तुत किया जाएगा, ताकि स्थिति स्पष्ट की जा सके।

संभावित परिणाम: आरक्षण को नए सिरे से करना पड़ सकता है लागू

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कोर्ट से चुनाव प्रक्रिया पर लगी रोक हट भी जाती है, तो भी आरक्षण को फिर से तय कर लागू करना पड़ सकता है। इससे चुनावों में और देरी की संभावना बढ़ गई है।

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